हरियाणा के सिरसा में स्थित चौधरी लालीराम डेयरी विश्वविद्यालय (CLDU) इन दिनों एक बार फिर चर्चा में है — वजह है कुलपति पद पर हुआ एक और अचानक बदलाव। जनवरी 2025 में बड़ी उम्मीदों और भरोसे के साथ नियुक्त किए गए कुलपति को महज चार महीने बाद पद से हटा दिया गया है।
अब सवाल उठ रहे हैं — क्या बदलाव इतनी जल्दी जरूरी था? क्या सब कुछ ठीक नहीं चल रहा था? और सबसे अहम — इसकी कीमत कौन चुका रहा है?
जब शुरुआत उम्मीदों से भरी थी
नए कुलपति जब जनवरी में आए थे, तो कैंपस में एक नई ऊर्जा दिखी थी। छात्रों के साथ संवाद, फैकल्टी की खुली बैठकें, नए रिसर्च प्रोजेक्ट्स पर बात — सब कुछ जैसे एक नये दौर की शुरुआत थी।
एक छात्र ने याद करते हुए कहा, “उन्होंने हमें पहली बार ये महसूस कराया कि हमारी आवाज़ भी मायने रखती है। हमें लगा था, अब कुछ अच्छा होने वाला है।”
फिर सब अचानक बदल गया
चार महीने बीते नहीं कि एक दिन खबर आई — कुलपति को हटा दिया गया है। न कोई नोटिस, न कोई स्पष्टीकरण। जैसे कोई सफा पलट दिया गया हो।
अभी तक विश्वविद्यालय या राज्य सरकार की ओर से कोई साफ कारण सामने नहीं आया है। यही खामोशी सबसे ज़्यादा अखरती है।
एक प्रोफेसर ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “हम सब हैरान हैं। इतनी जल्दी कोई फैसला क्यों लिया गया? क्या उन्हें काम करने का मौका भी मिला?”
छात्रों की उलझन और शिक्षकों की चिंता
विश्वविद्यालय में इस खबर के बाद से असमंजस का माहौल है। छात्र परेशान हैं कि हर कुछ महीनों में नेतृत्व बदलने से उनकी पढ़ाई और करियर दोनों प्रभावित हो रहे हैं।
“नए कुलपति आते हैं, नई योजनाएं बनती हैं… और फिर सब रुक जाता है,” एक छात्रा ने कहा।
“हर बार हमें फिर से शुरुआत करनी पड़ती है — और उस बीच हमारा समय चला जाता है।”
अब आगे क्या?
फिलहाल एक कार्यकारी कुलपति नियुक्त किए जाने की प्रक्रिया चल रही है, और सरकार नए कुलपति की तलाश में है। लेकिन सवाल ये नहीं कि अगला कौन होगा — असली सवाल है, क्या वो टिक पाएंगे?
निष्कर्ष: बदलाव का बोझ कौन उठाएगा?
किसी भी विश्वविद्यालय में स्थिर और सक्षम नेतृत्व बहुत जरूरी होता है। CLDU जैसे संस्थानों को खासतौर पर ऐसी दिशा की जरूरत है, जहां फैसले छात्रों और शिक्षा के हित में हों — न कि प्रशासनिक उलझनों या राजनीति की भेंट चढ़ें।
जब हर कुछ महीनों में नेतृत्व बदले, तो सपनों की नींव हिलती है। और सपनों को संभालने के लिए केवल कुर्सी नहीं, भरोसा चाहिए — वो भरोसा जो छात्रों, शिक्षकों और पूरे शिक्षा जगत का होता है।
अब वक्त है सोचने का — क्या हम बदलाव कर रहे हैं, या सिर्फ चेहरे बदल रहे हैं?