जोधपुर – राजस्थान की तपती दोपहर, आसमान से बरसती आग, और ज़मीन से उठती धूल… इस बीच एक ऐसा नज़ारा सामने आया जिसने हर किसी का दिल छू लिया। पानी की किल्लत से परेशान जोधपुर के लोगों का सब्र टूट गया। 45 डिग्री की भीषण गर्मी में न तो कोई छाता था, न पानी की एक बूंद… लेकिन लोगों ने हार नहीं मानी। वे सिर पर दरी रखकर कलेक्ट्रेट पहुंचे – एक ही सवाल लिए: “कब मिलेगा पानी?”
जब जनता खुद बन गई छांव
गर्मी से राहत पाने के लिए आमतौर पर लोग छाया में बैठते हैं या घरों में बंद हो जाते हैं, लेकिन यहां हालात कुछ और थे। जोधपुर के कई इलाकों में पिछले कई दिनों से पानी की सप्लाई पूरी तरह ठप है। नलों से बूंद भी नहीं टपक रही, और टैंकरों का कोई अता-पता नहीं।
ऐसे में जब लोगों को किसी उम्मीद की किरण नज़र नहीं आई, तो उन्होंने खुद ही छांव बनने की ठानी। सिर पर दरी और कपड़े डालकर, प्यासे होंठों और थके कदमों से वे कलेक्ट्रेट पहुंचे। प्रशासन को अपनी चुप्पी तोड़ने पर मजबूर कर दिया।
“हम पानी नहीं मांग रहे, जीने का हक़ मांग रहे हैं”
प्रदर्शन कर रहे एक बुज़ुर्ग ने कहा:
“हम पानी नहीं मांग रहे, हम ज़िंदगी मांग रहे हैं। सरकार बिजली के मीटर से पहले पानी के मीटर लगवाए, ताकि समझे हमारी प्यास का मोल।”
महिलाएं सिर पर सूती चादर डालकर छोटे बच्चों के साथ पहुंची थीं। कईयों के हाथ में खाली बर्तन थे, तो किसी की आंखों में आंसू।
“हर दिन टैंकर के पीछे दौड़ते हैं, घंटों लाइन में खड़े रहते हैं। फिर भी आधा बाल्टी पानी मिलता है। अब और नहीं सहा जाता,” – एक महिला ने गुस्से में कहा।
प्रशासन की नींद खुली या सिर्फ कागज़ी आश्वासन?
प्रदर्शन के बाद प्रशासन ने बैठक की और जांच कराने की बात कही। अफसरों ने भरोसा दिलाया कि टैंकर की संख्या बढ़ाई जाएगी और जरूरतमंद इलाकों में प्राथमिकता दी जाएगी। लेकिन जनता को अब वादों पर भरोसा नहीं।
“हर बार यही सुनते हैं – ‘देखेंगे’, ‘करेंगे’… लेकिन होता कुछ नहीं,” – एक युवा प्रदर्शनकारी बोला।
क्या सच में मिलेगा जवाब?
यह सिर्फ जोधपुर की कहानी नहीं है। ये हर उस इलाके की हकीकत है जहां गर्मी लोगों की जान लेती है और पानी सिर्फ पोस्टर में दिखता है। लोग अब सिर्फ सवाल नहीं पूछ रहे, वे जवाब मांग रहे हैं – साफ़, सच्चा और तुरंत।
समापन: प्यास सिर्फ गले की नहीं, सिस्टम की भी है
जो दृश्य जोधपुर में दिखा, वह एक चेतावनी है – कि अगर प्रशासन नहीं जागा, तो जनता और भी मजबूती से सड़कों पर उतरेगी।
जब छांव खुद साथ लानी पड़े और पानी मांगने के लिए धरना देना पड़े, तो समझिए हालात गंभीर हैं।
अब सवाल ये है — क्या प्रशासन सिर्फ जवाब देगा या समाधान भी?